किशनगढ़ शैली Kishangarh Genre


  • इस शैली को प्रकाश में लेन का श्रेय एरिक डिक्सन व डॉ. फैयाज अली को जाता है।
  • एरिक डिक्सन व कार्ल खंडालवाड़ा की अंग्रेजी पुस्तकों में किशनगढ़ शैली के चित्रों के सम्मोहन और उनकी शेलगत विशिष्टताओं को विश्लेषित किया गया है।
  • किशनगढ़ की स्थापना किशनसिंह ने 1609 में की।
  • किशनगढ़ शैली का विकास रूपसिंह के पुत्र मानसिंह (1658-1706) के समय प्रारंभ हुआ।

सावंतसिंह (नागरीदास) 1699 से 1764 ई तक
  • इनका शासनकाल किशनगढ़ शैली का समृद्ध काल था।
  • ये ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार की रचनाएँ करते थे।
  • इस युग को किशनगढ़ शैली का स्वर्ण युग माना जाता है।
  • किशनगढ़ शैली को उत्कृष्ट बनाने का श्रेय राजा सावंतसिंह, बणी-ठणी व मोरध्वज निहालचन्द को जाता है।

बणी-ठणी
  • सावंत सिंह की प्रेयसी
  • चित्रकारों ने इन्हें राधा के रूप में चित्रित किया।
  • कलाकार निहालचन्द ने सावंतसिंह व उनकी प्रेयसी बणी-ठणी को राधा व कृष्ण के रूप में चित्रित किया।
  • किशनगढ़ शैली में इस चित्र में नारी सोंदर्य को परिभाषित किया गया है।
  • इसका निर्माण 1778 में हुआ तथा इसका आकर 48.8 सेमी. × 36.6 सेमी. है।
  • यह चित्र आज भी किशनगढ़ महाराज के संग्रालय में मौजूद है तथा इसका एक मौलिक स्वरूप अल्बर्ट हॉल में रखा हुआ है जो सोंदर्य में मोनालिसा से भी कहीं आगे है।
  • एरिक डिक्सन ने इसे भारतीय मोनालिसा की संज्ञा दी।
  • बणी-ठणी का चित्र डाक टिकिटों पर भी जारी किया गया (5 मई, 1973 में



पुरुष आकृति
  • समुन्नत ललाट, पतले अधर, लम्बी आजानुबाहें, छरहरे पुरुष, लम्बी ग्रीवा, मादक भाव से युक्त नृत्य, नुकीली चिबुक
  • वेशभूषा – कमर में दुपट्टा, पेंच बंधी पगड़ी, लम्बा जामा

स्त्री आकृति
  • लम्बी नाक, पंखुड़ियों के समान अधर, लम्बे बाल, लम्बी व सुराहीदार ग्रीवा, पतली भृकुटी (बत्तख, हंस, सारस, बगुला) के चित्र
  • इस शैली में भित्ति चित्रण व रागरागिनी चित्रण नहीं मिलता है।
  • किशनगढ़ शैली में गुलाबी व सफेद रंग की प्रधानता है।
  • इस शैली में मुख्यतः केले के वृक्ष को चित्रित किया गया है।

वेसरि
  • किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण।

चांदनी रात की संगोष्ठी

  • चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया चित्र।
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