कृष्ण लीला
भागवत गीता
भागवत पुराण
रागमाला
बारहमासा
रसिक प्रिया
रागरागिनी
शिकार महफ़िल
सामंती
वैभव के दृश्य
पुरुष आकृति
- दाढ़ी-मूंछों युक्त वीरता का भाव दिखाती हुई उग्र आकृति
- वेशभूषा – बड़ी पगड़ी, फैला हुआ जामा, पीठ पर ढाल व हाथ में भाला लिए हुए।
स्त्री आकृति
- इकहरी तन्वंगी नायिका, धनुषाकार भृकुटी, लम्बी नाक, उन्नत ग्रीवा एवं पतले अधर
- वेशभूषा – तंग चोली, घेरदार घाघरा, मोतियों के आभूषण व पारदर्शी ओढ़नी
उस्ता कला
- इस शैली के उद्भव का श्रेय उस्ता कलाकारों को जाता है। इसका जन्म बीकानेर में हुआ है। तथा यहाँ के चित्रकार अपने चित्र पर अपना नाम व तिथि अंकित करते थे।
- मथेरणा व उस्ता परिवार बीकानेर के प्रसिद्ध परिवार है।
- बीकानेर के चित्रकार ज्यादातर मुसलमान थे इस लिए बीकानेर शैली पर मुग़ल शैली का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा।
हरमन गोएट्ज
- जर्मन कलाविद्
- इन्होने बीकानेर की लघु चित्र शैली के उद्भव में आर्ट एंड आर्किटेक्ट ऑफ़ बीकानेर पुस्तक की रचना की।
- राजपूत पेंटिंग्स बीकानेर शैली अपने व्यक्तित्व का बोध करवाती है।
रायसिंह
- इन्होने मुग़ल कलाकारों की दक्षता से प्रभावित हो कर कुछ को अपने साथ ले आये। इनमें उस्ता अली रजा व उस्ता हामिद रुकनुद्दीन प्रमुख थे।
गजसिंह
- इनके समय बीकानेर राज दरबार में मुख्य चित्रकार शाह मुहम्मद थे जो कि लाहौर से आये थे।
राजा अनूपसिंह
- इनके समय में बीकानेर शैली का समृद्ध काल देखने को मिलता है।
- इनके समय के प्रमुख चित्रकार अलीरजा, हसन व रामलाल थे।
महाराजा डुंगरसिंह
- इनके समय से इस शैली पर मुग़ल प्रभाव ख़त्म होने लगा एवं यूरोपियन प्रभाव पड़ने लगा।
- बीकानेर में कर्णसिंह और कल्याणमल ने भी चित्रकला को पूरा संरक्षण प्रदान किया। सबसे प्राचीन रेखांकन राव कल्याणमल के समय का है।
मेघदूत
- बीकानेर की मौलिक शैली के सर्वप्रथम दर्शन हमें कालिदास के मेघदूत में मिलते है।
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