राजस्थान का साहित्य Literature of Rajasthan in Hindi

राजस्थान का साहित्य Literature of Rajasthan in Hindi

संस्कृत साहित्य

क्रमांक
पुस्तक
लेखक
विशेष विवरण
1
अजीतोदय
जगजीवन भट्ट
मारवाड़ के जसवंतसिंह व अजीतसिंह के बारे में
2
अमर काव्य वंशावली
रणछोड़ भट्ट
मेवाड़ का सामाजिक व धार्मिक जीवन
3
राज रत्नाकर
सदाशिव भट्ट
राजसिंह (उदयपुर) के बारे में
4
अमरसार
पं. जीवाधार
महाराणा प्रताप व अमर सिंह के बारे में
5
एकलिंग महात्म्य
कान्ह व्यास व कुम्भा
गुहिल वंश की जानकारी
6
राज विनोद
सदाशिव भट्ट
१६ वीं सदी के समाज का रहन-सहन
7
राज वल्लभ
मंडन
१५ वीं सदी की स्थापत्य कला
8
हम्मीर महाकाव्य
नयनचंद सूरी
रणथम्भौर के चौहानों व अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण की जानकारी
9
पृथ्वीराज विजय
जयानक
दिल्ली व अजमेर के चौहान शासकों का राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास

राजस्थानी साहित्य


क्रमांक
पुस्तक
लेखक
विवरण
1
पृथ्वीराज रासो
चंदवरदाई
पृथ्वीराज चौहान तृतीय के विषय में
2
बीसलदेव रासो
नरपत नाल्ह
विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) के विषय में
3
हम्मीर रासो
सारंगधर (जोधराज)
हम्मीर (रणथम्भौर के विषय में
4
खुमाण रासो
दलपति विजय

5
वंश भास्कर
सूर्यमल्ल मिश्रण

6
वीर विनोद
श्यामलदास

7
राज रूपक
वीरभाण

8
गुण रूपक
केशवदास

9
सूरज प्रकाश
करणीदान
अभयसिंह (जोधपुर) के विषय में
10
वीर सतसई
सूर्यमल्ल मिश्रण

11
गुण भाष्य
हेमकवि

12
कान्हड़दे प्रबंध
पद्मनाभ
अलाउद्दीन खिलजी के जालौर आक्रमण के विषय में
13
अचल दास खिंची री वचनिका
शिवदास गाडण

14
वैली क्रिसन रुकमणि री
पृथ्वीराज राठौड़

15
राम रासो
माधोदास

16
मुहता नेणसी री ख्यात
मुहणोत नेणसी

17
राजिये रा सांरठा
कृपा राम

18
चेतावनी रा चुंगटया
केसरी सिंह बारहठ



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राजस्थान के लोकदेवता Rajasthan Folk God/Goddess


मारवाड़ के पंच पीर
  1. गोगाजी
  2. पाबू जी
  3. हड़बू जी
  4. रामदेवजी
  5. मेहा जी


पाबू, हड़बू, रामदे , मांगलिया मेहा।                 

 पाँचों पीर पधारजो गोगाजी गेहा।।

1. गोगाजी चौहान :
  • पंच पीरों में सर्वाधिक प्रमुख स्थान
  • जन्म संवत् 1003 में, जन्म स्थान – ददरेवा (चुरू)
  • पिता – जेवर जी चौहान, माता – बाछल दे, पत्नी – कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) की राजकुमारी केलमदे (मेनलदे)
  • केलमदे की मृत्यु सांप के काटने से हुई जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने अग्नि अनुष्ठान किया। जिसमें कई सांप जल कर भस्म हो गये फिर साँपों के मुखिया में आकर उनके अनुष्ठान को रोककर केलमदे को जीवित किया। तभी से गोगाजी नागों के देवता के रूप में पूजे जाते है।
  • गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन के साथ जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा था। अर्जन-सुर्जन ने मुस्लिम आक्रान्ताओं (महमूद गजनवी) की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। गोगाजी वीरता पूर्वक लड़कर शहीद हुए।
  • युद्ध करते समय गोगाजी का सर ददरेवा (चुरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेडी (शीषमेडी) तथा धड नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए धरमेडी/धुरमेडी व गोगामेडी भी कहते है
  • बिना सर में ही गोगाजी को युद्ध करते देख कर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहिर पीर (प्रत्यक्ष पीर) कहा।
  • उत्तर प्रदेश में गोगाजी के जहर उतारने के कारण जहर पीर/ जाहर पीर भी कहते है
  • गोगामर्डी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया। गोगामेडी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है तथा इसकी आकृति मकबरेनुमा है।गोगामेडी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है प्रतिवर्ष गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) को गोगाजी की याद में गोगामेडी, हनुमानगढ़ में भव्य मेला भरता है।
  • गोगाजी की आराधना में लोग सांकल नृत्य करते है
  • गोगामेडी में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी है
  • प्रतीक चिन्ह – सर्प
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी का निवास स्थान माना जाता है
  • ‘गोगाजी की ओल्डी’ नाम से गोगाजी का अन्य पूजा स्थल –सांचौर (जालौर)
  • गोगाजी से सम्बंधित वाद्य यंत्र ‘डेरू’ है
  • किसान वर्ष के के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी ‘गोगा राखड़ी’ बांधते है
  • सवारी – नीली घोड़ी
  • गोगा बाप्पा नाम से भी प्रसिद्ध है

2. पाबूजी राठौड़  :
  • जन्म – 1239 ई. में, जन्म स्थान – कोलुमण्ड गाँव, फलौदी (जोधपुर)
  • पिता – धाँधल जी राठौड़ , माता – कमलादे, पत्नी – फुलमदे/सुपियार दे सोढ़ी
  • फुलमदे अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री थी
  • पाबूजी की घोड़ी – केसर कालमी (यह काले रंग की घोड़ी देवल चारणी ने दी, जो जायल, नागौर के काछेला चारण की पत्नी थी
  • सन् 1276 ई. में जोधपुर के देचू गाँव में देवल चारणी की गायों को जींदराव खींची से छुड़ाते हुए पाबूजी वीरगति को प्राप्त हुए, पाबूजी की पत्नी उनके वस्त्रों के साथ सती हुई तथा इस युद्ध में पाबूजी के भाई बुड़ोजी भी शहीद हुए
  • पाबूजी के भतीजे व बुड़ोजीके पुत्र रूपनाथ जी ने जींद राव खींची को मारकर अपने पिता व चाचा की मृत्यु का बदला लिया।रूपनाथ जी को भी लोकदेवता के रूप में पूजते है। राजस्थान में रूपनाथ जी के प्रमुख मन्दिर कोलुमण्ड(फलौदी, जोधपुर) तथा सिम्भूदड़ा (नोखा मंडी, बीकानेर) में है। हिमाचल प्रदेश में रूपनाथ जी को बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है।
  • पाबूजी की फड़ नायक जाती के भील भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते है।
  • फड़ / पड़ – किसी भी महत्वपूर्ण घटना या महापुरुष की जीवनी का कपड़े पर चित्रात्मक अंकन ही फड़ या पड़ कहलाता है। फड़ का वाचन केवल रात्रि में होता है। फड़ वाचन के समय भोपा वाद्य यंत्र के साथ फड़ बाँचता है तथा भोपी सम्बंधित प्रसंग वाले चित्र को लालटेन की सहायता से दर्शकों को दिखाती है तथा साथ में नृत्य भी करती रहती है।
  • राजस्थान में फड़ निर्माण का प्रमुख केंद्र शाहपुरा (भीलवाडा) में है। वहाँ का जोशी परिवार फड़ चित्रकारी में सिद्धहस्त है। शांतिलाल जोशी व श्रीलाल जोशी प्रसिद्ध फड़ चित्रकार हुए है। यह जोशी परिवार वर्तमान में ‘द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका’ तथा ‘कलिंग विजय के बाद अशोक’ विषय पर फड़ बना रहा है।
  • सर्वाधिक फड़े तथा सर्वाधिक प्रसिद्ध फड़ पाबूजी की फड़ है।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • भारत सरकार ने सर्वप्रथम जिस फड़ का डाक टिकट जारी किया था वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु का टिकट) है।
  • देवनारायण जी की फड़ गुर्जर जाती के कुँवारे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते है।
  • भैंसासुर की फड़ का बाँचन नहीं होता, इसकी केवल पूजा (कंजर जाती के द्वारा) होती है।
  • रामदला व कृष्ण दला की फड़ (पूर्वी राजस्थान में) एक मात्र एसी फड़ है जिसका वाचन दिन में होता है।
  • हाल ही में जोशी परिवार द्वारा बनाई गई अमिताभ बच्चन की फड़ को बाँच कर मारवाड़ का भोपा रामलाल व भोपी पताशी प्रसिद्ध हुए।
  • मारवाड़ में सांडे (ऊंट) लेन का श्रेय पाबूजी को जाता है।
  • पाबूजी ‘ऊँटों का देवता’, ‘गोरक्षक देवता’ तथा प्लेग रक्षक देवता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
  • पाबूजी को ‘लक्ष्मण का अवतार’ माना जाता है।
  • ऊँटों को पालक जाती राईका / रेबारी /देवासी के अराध्य देव पाबूजी है।
  • पाबूजी की जीवनी ‘पाबू प्रकाश’ के रचयिता – आशिया मोड़जी
  • हरमल व चांदा डेमा पाबूजी के रक्षक थे।
  • माघ शुक्ल दशमी तथा भाद्रपद शुक्ल दशमी को कोलुमण्ड गाँव (फलौदी, जोधपुर) में पाबूजी का प्रसिद्ध मेला भरता है।
  • पाबूजी के पवाड़ें / पावड़े (गाथा गीत) प्रसिद्ध है, जो माठे वाद्य यंत्र के साथ गाये जाते है।
  • प्रतीक चिन्ह – भाला लिए हुए अश्वारोही तथा बायीं ओर झुकी हुई पाग।

3. हड़बू जी :
  • मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हड़बू जी के पिता का नाम – मेहाजी सांखला (भुंडेल, नागौर)
  • हड़बू जी बाबा रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
  • गुरु – बालीनाथ
  • संकटकाल में हड़बबू जी ने जोधपुर के राजा राव जोधा को तलवार भेंट की और राव जोधा ने इन्हें बैगटी (फलौदी, जोधपुर) जी जागीर प्रदान की।
  • बैगटी में इनका प्रमुख पूजा स्थल है। यहाँ हड़बू जी की गाड़ी (छकड़ा / ऊँट गाड़ी) की पूजा होती है। इस गाड़ी में हड़बू जी विकलांग गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते थे।
  • हड़बू जी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
  • हड़बू जी की सवारी सियार मणि जाती है।

4. रामदेवजी :
  • रामसा पीर, रुणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध है
  • रामदेवजी को कृष्ण का व उनके बड़े भाई बीरम देव को बलराम का अवतार माना जाता है।
  • पिता – अजमल जी तंवर, माता – मेणादे, पत्नी – नेतलदे (नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढा की पुत्री थी)
  • लोकमान्यता के अनुसार रामदेव जी का जन्म उंडूकाश्मीर गाँव (शिव तहसील, बाड़मेर) में भाद्रपद शुक्ल द्वितीय को हुआ था।
  • समाधी – रुणेचा(जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन ली
  • रामदेवजी के समाधि स्थल पर उनसे पहले उनकी मुहबोली बहन डाली बाई ने समाधि ली थी।
  • रामदेव जी की दो सगी बहने थी – लाछा बाई व सुगना बाई
  • मक्का से आये पीरों के कहा “हम तो केवल पीर है आप तो पीरों के भी पीर है।”
  • उनका प्रमुख शिष्य – हरजी भाटी व आईमाता
  • गुरु का नाम – बालीनाथ जिनका मंदिर मसूरिया, जोधपुर में है।
  • रामदेवजी ने भैरव राक्षस का वध सातलमेर, पोकरण में किया।
  • रामदेव जी की पंचरंगी ध्वजा – नेजा
  • रामदेवजी के तीर्थ यात्री – जातरू
  • रामदेवजी के मेघवाल भक्त – रिखियां
  • जम्मा – रामदेवजी की आराधना में श्रद्धालु लोग रिखियां से जम्मा रात्रि जागरण करते है
  • कुष्ठ व हैजा रोग निवारक देवता।
  • सवारी – लीला(हरा) घोड़ा
  • रामदेवजी ने कामड़ पंथ की स्थापना की।
  • राजस्थान में कामड़ पंथियों का प्रमुख स्थान पादरला गाँव (पाली) है तथा इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते है।
  • तेरहताली नृत्य - रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाये मंजीरे के साथ तेरहताली नृत्य करती है 

यह बैठकर किया जाने वाला एक मात्र लोक नृत्य है।
तेरहताली नृत्य के समय कामड़ जाति का पुरुष तन्दुरा (चौतारा) वाद्य यंत्र बजाता है। इस नृत्य को करते समय नृत्यांगना तेरह मंजीरे (9 दाहिने पांव पर, 2 कोहनी पर व 2 हाथ में) के साथ तेरह ताल उत्पन्न करते हुए तेरह स्थितियों में नृत्य करती है।\
यह एक व्यवसायिक या पेशेवर नृत्य भी है।
प्रसिद्ध तेरहताली नृत्यांगना – मांगीबाई, दुर्गाबाई।
  • रामदेव जी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
  • प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय को बाबा रामदेवजी का रामदेवरा (जैसलमेर) में भव्य मेला भरता है। पश्चिमी राजस्थान का यह सबसे बड़ा साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए पसिद्ध मेला है।
  • रामदेवजी का प्रतीक चिन्ह – पगल्याँ (पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर)
  • रामदेवजी एकमात्र ऐसे देवता जो कवि थे, “चौबीस बाणीयाँ” रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है।
  • रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
  • रामदेवजी के पूजा स्थल – रामदेवरा/रुणेचा (जैसलमेर), मसूरिया (जोधपुर), बिराठिया (पाली), बिठुजा (बालोतरा, बाड़मेर), सुरताखेड़ा (चित्तोडगढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)।

5.  मेहाजी :

  • मांगलियों के ईष्ट देव होने के कारण इन्हें मांगलिया मेहा जी भी कहते है।
  • घोड़े का नाम : किरड़ काबरा
  • जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए शहीद
  • बपिनी गाँव (ओसियां, जोधपुर) में प्रमुख पूजा स्थल
  • कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी) को लोकदेवता मेहा जी की जन्माष्टमी मनाई जाती है।
मारवाड़ के पंच पीरों के अलावा अन्य लोक देवता


6. तेजाजी :

  • जन्म – 1074 ई. खड़नाल/खरनाल (नागौर) में, माघ शुक्ल चतुदर्शी को
  • तेजाजी नाग वंशीय जाट थे।
  • पिता – ताहड़ जी जाट, माता – राजकुंवरी/रामकुंवरी, पत्नी – पेमलदे (पनेर के रायचन्द्र की पुत्री)
  • तेजाजी ने लाछा गुर्जरी की गायों को मेर( वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाया था।
  • सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से तेजाजी की मृत्यु हो गयी।
  • घोड़ी – लीलण
  • तेजाजी की मृत्यु की सुचना उनकी घोड़ी ने घर आकर दी।
  • तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते है।
  • काला और बाला के देवता, कृषि कार्यो के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता के रूप में भी पूजनीय।
  • अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय।
  • तेजाजी की याद में प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है।
  • सेंदरिया, ब्यावर, भावतां सुरसरा (अजमेर) व खरनाल (नागौर) में तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल है।
  • साँप काटने पर तेजाजी के भोपे चबूतरे पर पीड़ित व्यक्तियों को ले जाकर गौ मूत्र से कुल्ला कराके तथा दांतों में गोबर की राख दबाकर साँप काटे हुए स्थान से जहर चूसना प्रारंभ करता है।
7. देवनारायण जी :
  • जन्म – 1243 ई., वास्तविक नाम – उदयसिंह
  • बगड़ावत परिवार में जन्म
  • इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते है।
  • पिता – सवाईभोज
  • माता – साढू देवी
  • पत्नी – पीपलदे
  • घोड़ा – लीलागर
  • देवनारायण जी के जन्म से पूर्व ही उनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से युद्ध करते हुए अपने 23 भाइयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायण जी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा ‘बगड़ावत महाभारत’ के रूप में प्रसिद्ध है।
  • देवजी की फड़ – गुर्जर जाति के कुंवारे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
  • 1 मंतर = 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना जाता है।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
  • गुर्जरों का तीर्थ स्थल – सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा)
  • जोधपुरिया (टोंक) में देवजी का प्रमुख पूजा स्थल
8. देव बाबा :

  • नगला जहाज गाँव (भरतपुर) में मंदिर
  • भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला भरता है।
  • इनकी याद में चरवाहों को भोज करवाया जाता है।
9. वीर कल्लाजी राठौड़ :

  • जन्म – विक्रम संवत् 1601 में
  • जन्म स्थल – मेड़ता (नागौर)
  • पिता – राव अचलाजी
  • दादा – आससिंह
  • कल्ला जी मीराबाई के भतीजे थे।
  • 1567 ई. में अकबर के विरुद्ध तथा उदयसिंह के पक्ष में युद्ध करते हुए जयमल राठौड़ तथा पत्ता सिसोदिया सहित वीर कल्लाजी भी शहीद हुए। युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में वीरता दिखाए जाने के कारण इनकी ख्याति चार हाथों वाले लोकदेवता के रूप में हुई।
  • कल्लाजी के सिद्ध पीठ को “रनेला” कहते है।
  • कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ थे।
  • चित्तोडगढ़ किले में भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है।
  • कल्लाजी शेषनाग के अवतार के रूप में पूजनीय है।
  • कल्ला जी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।
10. भूरिया बाबा (बाबा गौमतेश्वर) :

  • मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते।
  • दक्षिण राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र में इनके मंदिर है।
11. मल्लीनाथ जी :

  • जन्म – 1358 ई.
  • पिता – राव सलखा (मारवाड़ के राजा)
  • माता – जाणीदे
  • खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन फिरोजशाह तुगलक की सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
  • प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर है।
  • यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मंदिर है।
  • गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रूपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)
12. बाबा तल्लीनाथ :

  • वास्तविक नाम – गोगादेव राठौड़
  • मारवाड़ के राजा विरमदेव के पुत्र तथा मंडोर के राजा राव चुंडा राठौड़ के भाई
  • तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ पर राज किया।
  • जहरीला जानवर काटने पर तल्लीनाथ जी की पूजा की जाती है
  • तल्लीनाथ जी ओरण (धार्मिक मान्यता से पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है) के देवता के रूप में प्रसिद्ध है।
  • भारत की पहली ओरण पंचायत – ढोंक गाँव (चौहटन, बाड़मेर) है , जहाँ पर विरात्रा माता का मंदिर है।
  • जालौर के प्रसिद्ध लोक देवता
  • जालौर जिले के पांचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी, के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है। 
13. मामा देव :

  • वर्षा के देवता
  • मामा देव का कोई मंदिर नहीं है और न ही कोई मूर्ति होती है।
  • गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामा देव पूजे जाते है।
14. भोमिया जी :

  • गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध
15. केसरिया कुंवरजी :

  • लोकदेवता गोगाजी के पुत्र
  • इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते है
16. पनराजजी :

  • जन्म – नगा गाँव (जैसलमेर)
  • मुस्लिम लुटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायों को छुड़ाते हुए शहीद
17. हरिराम बाबा :

  • झोरड़ा (नागौर) में इनका पूजा स्थल
  • गुरु – भूरा
  • इन्होने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्तियों को ठीक करने का मंत्र सिखा
18. डूंगजी – जवाहर जी :

  • सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता जो धनवानों व अंग्रजों के धन लूटकर गरीबों में बांटते थे व 1857 की क्रांति में सक्रीय भाग लिया।
19. वीर बिग्गाजी :

  • जन्म – जांगल प्रदेश
  • पिता – राव मोहन
  • माता – सुल्तानी देवी
  • बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता
  • मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा की
20. बाबा झूंझारजी :

  • जन्म – इमलोहा गाँव (सीकर)
  • भगवान राम के जन्म दिवस रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
21. वीर फत्ताजी :
  • जन्म – साथूँ गाँव (जालौर)
  • गाँव पर लुटेरों के आक्रमण के समय इन्होने भीषण युद्ध किया
  • इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला भरता है।